दाम्पत्य जीवन में खुशी

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जन्मकुंडली-गुणदोष मिलान के साथ विवाह योग भी देखें । विवाह के समय जन्मकुंडली तथा गुण-दोष मिलान के साथ कुछ खास योगों पर भी ध्यान दिया जाए तो दाम्पत्य जीवन में
खुशी-प्रसन्नता बढ़ जाती है । विवाह के समय जन्मकुंडली और गुण-दोष मिलान तो सर्वश्रेष्ठ होता ही है। साथ ही अगर कुछ खास योगों पर भी ध्यान दिया जाए तो दाम्पत्य जीवन में खुशी-प्रसन्नता और भी बढ़ जाती है।
मृगशिरा, हस्त, मूल, अनुराधा, मघा, रोहिणी, रेवती, तीनों उत्तरा, स्वाती ये नक्षत्र निर्वेध हो तो विवाह शुभ और मंगलकारी है।
वर-कन्या दोनों की एक राशि हो और नक्षत्र भिन्न हो तथा नक्षत्र एक और राशि भिन्न हो तो नाड़ी और गुण-दोष नहीं होता है, एक नक्षत्र हो और चरण अलग-अलग हो तो शुभ है। जन्म राशि या लग्न से अष्टम राशि का नवांश या उसका स्वामी विवाह लग्न में हो तो विवाह शुभकारक नहीं होता।
विवाह लग्न में बारहवें में शनि, दसवें में मंगल, तीसरे में शुक्र और लग्न में चंद्रमा तथा पाप ग्रह हो तो विवाह शुभ नहीं है। लग्नेश, शुक्र और चंद्रमा छठे भाव में अशुभ है। विवाह समय में बधिर लग्न हो तो दरिद्रता, दिवान्ध लग्न हो तो वैधव्य, निशान्ध लग्न हो तो संतान मरण, पंगु लग्न हो तो सम्पूर्ण धन का नाश होता है।
आश्लेष नक्षत्र में उत्पन्न बालक या कन्या सास और श्वसुर के लिए भारी होते हैं। वर कन्या के नक्षत्र एक नाड़ी में हो तो विवाह अशुभकारक होता है। उसमें भी मध्य नाड़ी में दोनों नक्षत्र हो तो भरण समझना चाहिए।
9, 4, 14, 30 इन तिथियों को छोड़कर अन्य तिथियों में शुभ अवसर में विवाह शुभ है।
विवाहकालीन लग्न से द्वादश भाव में बृहस्पति हो तो स्त्री धनवान होती है। सूर्य हो तो निर्धन होती है। चंद्रमा हो तो अधिक व्यय करने वाली होती है। राहु हो तो कुमार्गगामिनी होती है। शनि या मंगल हो तो मदिरा सेवन करने वाली होती है।
किसी स्त्री के विवाह लग्न के प्रथम भाव में चंद्रमा हो तो वह स्त्री अल्पायु होती है। द्वितीय भाव में चंद्रमा हो तो कई पुत्र होते हैं।
सप्तम भाव में शुक्र हो तो मृत्यु जैसा फल प्राप्त होता है। चंद्रमा हो तो पति छोड़ देता है।
अष्टम भाव में मंगल होने से रोगिणी रहती है। नवम भाव में चंद्रमा होने से कन्या सन्तान उत्पन्न होती है।
दशम भाव में राहु हो तो ऐसी स्त्री विधवा होती है। एकादश भाव में चंद्रमा हो तो धनवान होती है।
विवाह से सोलह दिन के भीतर सम दिनों में या पांचवीं, सातवीं और नौवें दिन में वधू प्रवेश शुभ होता है। सोलह दिन के बाद विषम वर्ष, मास, दिन में वधू प्रवेश शुभ माना गया है। पांच वर्ष के बाद किसी भी समय शुभ दिन में वधू प्रवेश हो सकता है।
विशाखा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में उत्पन्न कन्या अपने देवर का नाश करती है। नाश से तात्पर्य अनिवार्य मृत्यु से नहीं है, अपितु बीमारी, अनावश्यक खर्चे, और अपमान से है।
ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न कन्या अपने जेठ के लिए अशुभ कही गई है। अत: ऐसी कन्या का विवाह सबसे बड़े लड़के से ही करना चाहिए।

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